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माँ नर्मदा की महिमा

माँ नर्मदा का उद्गम स्थल

हिन्दू धर्म में नर्मदा को पापनाशिनी ,सुखदायिनी पवित्र नदी माना जाता है जिसका  उद्गम स्थल अमरकंटक है| प्रमुख तीर्थो में अमरकंटक का महत्वपूर्ण  स्थान है इसी पूण्य भूमि में नर्मदा ,सोन तथा ज्वालावती जैसी पावन नदियों का उद्वाम  स्थान है अमरकंटक मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले में विन्ध्याचल  और सतपुड़ा  पर्वत श्रेणियों के पूर्वी संधिस्थल पर स्थित है.

भारत की  सम्पूर्ण नदियों में नर्मदा सर्वाधिक प्राचीन पूण्यशालिला मानी जाती है इसके दोनों तटो पर अनेक देवस्थान तथा नगर शोभायमान है नर्मदा के किनारे अनेक ऋषि मुनियों जैसे अगस्त्य, भृगु, अत्री, भारद्वाज, कौशिक, मार्कण्डेय, शांडिल्य, कपिल आदि ऋषियों ने नर्मदा तट पर तपस्या की है कहते है की नर्मदा का तट एक पवित्र तीर्थ है जिसके किनारे तपस्या का फल हजारो गुना मिलता है.

नर्मदा नदी की विशेषता

गंगा ,यमुना ,तथा सरजू अदि पावन नदियों के स्नान करने से जो फल मिलता है वह फल नर्मदा के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता हैपुराणों के अनुसार नर्मदा शिव पुत्री होने के कारण नर्मदा को शाग्री भी कहा जाता है जब भगवान  भोलेनाथ मेकल पर्वत पर  तपस्या में लींन थे तब देवताओ ने उनकी स्तुति करके उन्हें तपस्या से जगाया तो उनके शारीर से पसीने की कुछ बुँदे पर्वत पर गिरी इन्ही बूंदों से एक कुंड का प्रादुर्भाव हुआ.

फिर इस कुंड से एक बारह वर्ष की कन्या उत्पन्न हुई जो सुन्दरता की मूरत थी तथा जिसको देखने पर सुखद अनुभव होता था अत्यंत रूपवती होने के कारण देवताओ ने उसका नाम नर्मदा रखा (नर्म का अर्थ है- सुख और दा का अर्थ है- देने वाली)  जिसे नर्मदा नदी  के नाम से जानते है| इसका उदगम मेकल पर्वत से होने के कारण इसे मेकल सुता भी कहते है जब यह पर्वतीय क्षेत्र से बहती है.

तब रोव की आवाज करते हुए आगे बढती है इसलिए इसे भक्तजन रेवा भी कहते है नर्मदा को मध्यप्रदेश की जीवन रेखा भी कहा जाता है यह उत्तर और दक्षिण भारत के बिच एक पारम्परिक शीमा की तरह कार्य करती है यह अपने उद्वागम से पश्चिम की 1,312  किमी चल कर खम्भात की खाड़ी में जाकर  मिलती है.

नर्मदा नदी उल्टी दिशा में क्यों बहती है

माँ नर्मदा नदी करोडो लोगो की आस्था का प्रतिक है इसे जीवनदायिनी भी कहा गया है नर्मदा नदी मध्य प्रदेश और गुजरात की प्रमुख नदी है जिसके किनारों पर 10 हजार तीर्थ स्थल है जहां सभी नदिया पश्चिम से पूर्व की और बहती है और बंगाल की खाड़ी में समाहित होती है वही नर्मदा नदी एक ऐसी नदी है जो पूर्व से पश्चिम की तरफ बहती है और अरबसागर में विलीन हो जाती है.

नर्मदा नदी लम्बाई 1,312 किमी है भोगोलिक स्थति के अनुसार देखते हुए नर्मदा लिफ्ट वेली में होने के कारण भी उल्टी दिशा में प्रवाहित होती है पुराणों के अनुसार -नर्मदा नदी के बारे में कहा जाता है कि यह राजा मैखल की पुत्री थीं। नर्मदा के विवाह योग्‍य होने पर मैखल ने उनके विवाह की घोषणा करवाई। साथ ही यह भी कहा कि जो भी व्‍यक्ति गुलाबकावली का पुष्‍प लेकर आएगा.

माँ नर्मदा की आत्मकथा

राजकुमारी का विवाह उसी के साथ होगा। इसके बाद कई राजकुमार आए लेकिन कोई भी राजा मैखल की शर्त पूरी नहीं कर सका। तभी राजकुमार सोनभद्र आए और राजा की गुलबकावली पुष्‍प की शर्त पूरी कर दी। इसके बाद नर्मदा और सोनभद्र का विवाह तय हुआ राजा मैखल ने जब राजकुमारी नर्मदा और राजकुमार सोनभद्र का विवाह तय किया तो राजकुमारी की इच्‍छा हुई.

कि वह एक बार तो उन्‍हें देख लें। इसके लिए उन्‍होंने अपनी सखी जुहिला को अपने वस्त्र और गहने पहना  कर  राजकुमार के पास संदेश के साथ भेजा। सोनभद्र ने जोहिला को नर्मदा समझ कर उसके सामने प्रेम प्रस्ताव रखा तो जुहिला उनके प्रेम प्रस्ताव को मना नही कर सकी और सोनभद्र से प्रेम करने लगी लेकिन काफी समय बीत गया पर  जुहिला वापस नहीं आई.

तो राजकुमारी को चिंता होने लगी और वह उसकी खोज में निकल गईं। तभी वह सोनभद्र के पास पहुंचीं और वहां जुहिला को उनके साथ देखा। तो उन्‍हें अत्‍यंत क्रोध आया। और  उन्‍होंने आजीवन कुंवारी रहने का प्रण लिया और उल्‍टी दिशा में चल पड़ीं। कहा जाता है कि तभी से नर्मदा पूर्व से पश्चिम की और उल्टी दिशा में बहती हुई अरब सागर में जाकर मिल गई। जबकि अन्‍य नदियों की बात करें तो सभी नदियां बंगाल की खाड़ी में मिलती हैं.

नर्मदा नदी का हिन्दू धर्म में महत्व

हम आपको नर्मदा नदी के महत्व के बारे में बतायेगे प्राचीन ग्रंथो जो रेवा नदी का उल्लेख मिलता है वह रेवा नदी और कोई नही नर्मदा ही है जिसे माँ रेवा के नाम से भी जाना जाता है नर्मदा ही एक ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है भक्तजन बड़ी आस्था से माँ नर्मदा की परिक्रमा करते है नर्मदा को पापनाशिनी भी कहा जाता है। नर्मदा शब्द ही मंत्र है और नर्मदा कलियुग में अमृत धारा है। नर्मदा के किनारे तपस्वियों की साधना स्थली भी हैं और इसी कारण इसे तपोमयी भी कहा गया है.

नर्मदा नदी के शिवलिंग का रहस्य

 जिसके दर्शन से ही समस्त पापो का नाश हो जाता है नर्मदा नदी का  हर कंकर शक्कर के रूप में पूजा जाता है क्युकी नर्मदा नदी ही ऐसी  नदी है जिसके तल से निकले शिवरुपी शिवलिंग निकलते है जिसे नर्मदेश्वर शिवलिंग कहते है नर्मदा से निकले नर्मदेश्वर शिवलिंग साक्षात भोले नाथ स्वरूप होते है जिनकी पूजा करने से अनेक लाभ मिलते है नर्मदेश्वर शिवलिंग स्वयंम्भू होते है.

जिसको प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नही होती है इन्हे  नर्मदा से लाकर सीधे स्थापित किया जा सकता है  नर्मदेश्वर शिवलिंग अत्यंत पवित्र और पावन होते है जिनसे सकारातमक उर्जा प्रवाहित होती रहती है जो कोई भी नर्मदेश्वर शिवलिंग घर में स्थापित करता है  उसको शांति तथा सुख की प्राप्ति होती है घर में नर्मदेश्वर शिवलिंग रखना शुभ माना गया है.

नर्मदेश्वर शिवलिंग केवल नर्मदा नदी से ही निकलते है क्युकी माँ नर्मदा को वरदान प्राप्त है की नर्मदा से निकला हर कंकर शंकर के रूप में पूजा जायेगा  पुरानो में कहा गया है की प्राचीन काल में नर्मदा नदी ने जब गंगा नदी के समान होने के लिए निश्चय किया और ब्रह्मा जी की तपस्या करने लगी क्योकि ब्रह्मा जी ही एक ऐसे देवता है जो वरदानो के लिए प्रसिद्ध है|किसी भी देवता या दानव को  जब वरदान प्राप्त करना रहता था.

नर्मदा नदी का रहस्य

तो वे ब्रह्मा जी की ही तपस्या करते थे, इसलिए माँ नर्मदा ने भी ब्रह्मा जी की तपस्या की और ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया|तब ब्रह्मा जी ने नर्मदा से वरदान मागने को कहा, तब नर्मदा ने कहा की मुझे गंगा नदी के समान पाप नाशिनी तथा पूजनीय बना दीजिये , जिससे लोग मेरी पूजा अर्चना करे और मेरा नाम प्रख्यात हो तब ब्रह्मा जी ने कहा ,की इस संसार में एक समान कोई नहीं हो सकता है,

क्या भगवान विष्णु के समान कोई दूसरा पुरुष हो सकता है| क्या कोई दूसरा देवता भगवान शिव बराबरी कर सकता है| या देवी पार्वती के समान कोई दूसरी नारी हो सकती है नर्मदा जी ने ब्रह्मा जी की बात सुनकर वहा से चली गयी उसके बाद माँ नर्मदा ने भोले नाथ को प्रसन्न करने के लिए पिलपिला तीर्थ काशी पूरी में  शिवलिंग की स्थापना की और तपस्या करने लगी.

 तब भगवान शिव नर्मदा की तपस्या से बहुत प्रसन्न हुए ,और वरदान मागने को कहा  तब नर्मदा ने कहा  की भगवान मुझे इतना ही वर दीजिये की आपके  चरणों में मेरी भक्ति सदैव बनी रहे|नर्मदा की बात सुनकर भगवान शिव शंकर बहुत प्रसन्न हुए और कहाँ की नर्मदे तुम्हारे तल पर जितने भी कंकर है  वो सभी शंकर हो जायेगे और तुम्हारे दर्शन मात्र से सम्पूर्ण पापो का नाश हो जायेगा.

इतना कह कर भगवान शंकर उसी लिंग में सदा के लिए लींन हो गये और माँ नर्मदा भी इतने वरदान और पवित्रता पाकर बहुत प्रसन्न हुई|तभी से नर्मदा के कंकर को शंकर के रूप में पूजा जाता है जिसे नर्मदेश्वर शिवलिंग के नाम से जानते है.

नर्मदा जयंती का महत्व और क्यों मनायी  जाती है

मध्यप्रदेश और गुजरात का मुख्य पर्व है नर्मदा जयंती नर्मदा जयंती माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को  मनायी  जाती है क्युकी इसी दिन नर्मदा का उदगम भोलेनाथ के पसीने की बूंदो से हुआ था नर्मदा को मध्यप्रदेश की जीवन रेखा कहा जाता है नर्मदा ही  केवल एक ऐसी नदी है जिसका जन्मोत्सव मनाया जाता है और  माँ की तरह पूजा जाता हैं.कनखल क्षेत्र में गंगा पवित्र मानी जाती है.

और कुरुक्षेत्र में सरस्वती को पवित्र माना गया है परन्तु गाँव हो या वन नर्मदा सर्वत्र पवित्र  मानी गयी है  इस नदी का धार्मिक महत्व भी हैं. ब्रह्माण्ड पुराण में इसे सिद्ध क्षेत्र कहा गया. नर्मदा के  जल को पाप निवारक  माना गया है. जिसके जल में स्नान करने से जन्मो-जन्मो के पापो से मुक्त हो जाते हैं. नर्मदा के तट पर लोग अपने पितरों का पिंड दान  भी करते है |

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा के पावन तट पर

नर्मदा नदी के किनारे पर ही भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग  स्थित है जो निमाड़ का प्रसिद्ध शिव मंदिर है जहा लोग दूर दूर से दर्शन करने के लिए आते है नर्मदा नदी को अनेक वरदानो में एक वरदान यह भी प्राप्त है की नर्मदा के हर कंकर में शंकर में शंकर का वास है जिसे नर्मदेश्वर शिवलिंग कहते है नर्मदा नदी शुखदायिनी नदी है जिसक जन्म उत्सव धूम धाम से मनाया जाता है नर्मदा जयंती महोत्सव पर नर्मदा के किनारे बसे गांवो तथा शहरों जैसे महेश्वर, उज्जैन, ओमकारेश्वर, बकावां, बड़वाह  आदि जगहों पर धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता हैं.

नदी के किनारों को सजाया जाता हैं, महायज्ञ किये जाते हैं और शाम के समय  सभी भक्तजन माँ नर्मदा की विशेष आरती करते है तथा किनारों पर दीप प्रज्वलित करते है शाम के समय जब दीप प्रज्वलित किये जाते तब एसा लगता है जैसे तारे जमीन पर आ गये हो तथा प्रसादी के रूप में भंडारे भी  किये जाते हैं. यह त्यौहार पूरे एक सप्ताह तक इसी प्रकार मनाया जाता हैं.

नर्मदा जयंती महोत्सव  को देखने के लिए देश से नहीं बल्कि विदेशों से भी काफी भक्तजन आते हैं. भारत में अन्य नदियाँ भी हैं लेकिन किसी भी नदी का इस तरह सात दिनों तक महोत्सव नहीं मनाया जाता हैं.  

पुराणिक कथाओ के अनुसार माँ नर्मदा की कहानी

वामन पुराण की एक कथा के अनुसार अंधकासुर भगवान शिव और पार्वती का पुत्र था. एक दैत्य हिरण्याक्ष ने भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्ही की तरह बलवान पुत्र पाने का वरदान माँगा. भगवान शिव ने एक क्षण भी गवाए अपना पुत्र “अन्धक” हिरण्याक्ष को दे दिया. अंधकासुर भगवान शिव का परम भक्त था उसने भगवान शिव की भक्ति कर उनसे से 2000 हाथ, 2000 पांव, 2000 आंखें, 1000 सिरों वाला विकराल स्वरुप प्राप्त किया. 

लेकिन जैसे ही जैसे हिरण्याक्ष की ताकत बढते चली गई उसके अत्याचार बढते चले गए.  और उसने देवताओ से उनका स्वर्गलोक भी छीन लिया तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गये और विनती. की प्रभु आप  ही हमें इस दैत्य से बचा सकते है तब भगवान विष्णु ने देवताओ की प्रार्थना सुनी और भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध कर दिया.

पिता की मृत्यु की खबर सुनते ही अंधकासुर के मन में बदले की भावना जाग उठी. और वह भगवान विष्णु और महादेव को अपना शत्रु मानने लग गया अंधकासुर ने अपने बल और पराक्रम से देवलोक पर अपना अधिपत्य जमा लिया. तथा उसने   देवलोक पर आधिपत्य करने के बाद अंधकासुर ने कैलाश पर भी अपना अधिपत्य करने के लिए भोले नाथ से युद्ध करने लगा  कैलाश में अंधकासुर और महादेव के बीच घोर युद्ध हुआ .

जिसमे शिवजी ने  अंधकासुर का वध कर दिया .अंधकासुर के वध होने के बाद देवताओं को भी अपने द्वारा किये गए पापों का ज्ञात हुआ . सभी देवता, भगवान विष्णु और ब्रह्मा, भगवान शिव के पास गये  जो कि मेकल पर्वत (अमरकंटक) पर समाधिस्थ थे. शिव अंधकासुर राक्षस का वध कर शांत-सहज समाधि में बैठे थे.

अनेकों स्तुतियाँ, वंदना और प्रार्थना करने के बाद भगवान शिव ने अपनी आँखे खोली तब सभी देवताओ  निवेदन किया की  “हे भगवन, अनेकों प्रकार के विलास, भोगो और असंख्य दैत्यों के वध से हमारी आत्मा पापी हो चुकी हैं, इसका निवारण कैसे किया जाए. कैसे हमें पुण्य की प्राप्ति होगी”. जिसके बाद भगवान शिव के सिर से पसीने की एक बूंद धरती पर गिरती हैं.

कुछ ही क्षणों में वह बूंद तेजोमय कन्या के रूप में परिवर्तित हो गयी  उस कन्या का नाम देवताओ ने नर्मदा रखा और अनेकों वरदानों से कृतार्थ किया.भगवान शिव ने नर्मदा को माघ मास की शुक्ल सप्तमी से नदी के रूप में बहने और लोगों के पापों को हरने का आदेश दिया. नर्मदा के अवतरण की इसी तिथि को नर्मदा जयंती के रूप में मनाई जाती हैं.

पाप नाशिनी माँ नर्मदा

शिव से आदेश मिलने के बाद नर्मदा प्रार्थना करते हुए कहती हैं कि “भगवान! मैं कैसे लोगों के पाप दूर का सकती हैं” तब भगवान विष्णु नर्मदा को आशीर्वाद देते हैं.“नर्मदे त्वें माहभागा सर्व पापहरि भव,त्वदत्सु याः शिलाः सर्वा शिव कल्पा भवन्तु ताः”अर्थात नर्मदा तुम्हारे अंदर संसार के सभी पापों को हरने की क्षमता होगी. तुम्हारे जल से शिव का अभिषेक किया जायेगा. भगवान शिव ओमकारेश्वर के रूप में सदैव तुम्हारे तट पर विराजमान रहेंगें.

और उनकी कृपा तुम पर बन रहेगी. जिस प्रकार स्वर्ग से अवतरित होकर गंगा प्रसिद्द हुई थी उसी प्रकार तुम भी पापनाशिनी ,सुखदायिनी कल्याणमयी माता के रूप में जन जन की सुखदात्री के रूप में प्रसिद्ध होगी तथा नर्मदा ने भोलेनाथ की भी तपस्या करके अपने हर ककर को शंकर के रूप में पूजने का वरदान प्राप्त किया जो नर्मदेश्वर शिवलिंग  के रूप में पूजा जाता है 

माँ नर्मदा का ग्रंथों में उल्लेख

  • रामायण तथा महाभारत और परवर्ती ग्रंथों में नर्मदा नदी के विषय में अनेक उल्लेख हैं। पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार नर्मदा की एक नहर किसी सोमवंशी राजा ने निकाली थी जिससे उसका नाम सोमोद्भवा भी पड़ गया था।
  • गुप्तकालीन वंश अमरकोश में भी नर्मदा को सोमोद्भवा कहा है।
  • रघुवंश में नर्मदा का उल्लेख है।
  • कवि कालिदास ने भी नर्मदा को सोम प्रभवा कहा है।
  • मेघदूत में रेवा या नर्मदा या मेकलसुता का सुन्दर वर्णन है।
  • वाल्मीकि ने रामायण में भी नर्मदा का उल्लेख किया है । इसके पश्चात के श्लोकों में नर्मदा का एक युवती नारी के रूप में सुंदर वर्णन है।
  • .महाभारत में नर्मदा को ॠक्ष पर्वत से उद्भूत माना गया है।
  • भीष्मपर्व में नर्मदा का गोदावरी के साथ उल्लेख है।
  • श्रीमद्भागवत में रेवा और नर्मदा दोनों का ही एक स्थान पर उल्लेख है।
  • शतपथ ब्राह्मण ने रेवोत्तरस की चर्चा की है, जो पाटव चाक्र एवं स्थपति (मुख्य) था, जिसे सृञ्जयों ने निकाल बाहर किया था।
  • पाणिनि के एक वार्तिक ने ‘महिष्मत्’ की व्युत्पत्ति ‘महिष’ से की है, इसे सामान्यत: नर्मदा पर स्थित माहिष्मती का ही रूपान्तर माना गया है। इससे यह प्रकट होता है कि सम्भवत: वार्तिककार को (लगभग ई.पू. चौथी शताब्दी में ) नर्मदा का परिचय के परिचय के बारे में ज्ञान था

नर्मदाअष्टक श्लोक

सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितमद्विषत्सु ,  पाप जात जात कारि वारि संयुतम

कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे ,   त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे 1

त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकमकलौ ,  मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं

सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे  ,त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे 2

महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं  , ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम

जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे , त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे 3

गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा  , मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा

पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे  , त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे 4

अलक्षलक्ष किन्न रामरासुरादी पूजितं  , सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षीलक्ष कुजितम

वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे  ,त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे 5

सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपात्रि षटपदै  , धृतम स्वकीय मानषेशु नारदादि षटपदै:

रविन्दु रन्ति देवदेव राजकर्म शर्मदे , त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे 6

अलक्षलक्ष लक्षपाप लक्ष सार सायुधं  , ततस्तु जीवजंतु तंतु भुक्तिमुक्ति दायकं

विरन्ची विष्णु शंकरं स्वकीयधाम वर्मदे , त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे 7

अहोमृतम श्रुवन श्रुतम महेषकेश जातटे , किरात सूत वाड़वेषु पण्डिते शठे नटे

दुरंत पाप ताप हारि सर्वजंतु शर्मदे ,  त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे 8

इदन्तु नर्मदाष्टकम त्रिकलामेव ये सदा पठन्ति ते निरंतरम न यान्ति दुर्गतिम कदा

सुलभ्य देव दुर्लभं महेशधाम गौरवम पुनर्भवा नरा न वै त्रिलोकयंती रौरवम 9

त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे , नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे

त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे , त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे

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