अर्धनारेश्वर नर्मदेश्वर शिवलिंग || ardhanreshwar narmdeshwar shivling
आप ने नर्मदेश्वर शिवलिंग के बारे में देखा और सुना होगा क्युकी भगवान भोले नाथ के अनेक रूप है और हम अलग अलग रूप में उनको पूजते है
अर्धनारेश्वर नर्मदेश्वेर शिवलिंग जो अति दुर्लभ शिवलिंग है जो नर्मदा नदी से प्राप्त किये जाते है क्युकी नर्मदा ही एक ऐसी नदी है जिसकी गोद से शिव के रूप में अनेक प्रकार के शिवलिंग निकलते है जिन्हें हम नर्मदेश्वेर शिवलिंग कहते है|
अर्धनारेश्वर नर्मदेश्वर
अर्द्धनारेश्वेर शिवलिंग जिसमे आधा रूप भोलेनाथ का है और आधा माता पार्वती का है, जिससे सम्पूर्ण सृष्टी उत्पन्न होती है, इसीलिए भगवान भोले नाथ और माता पार्वती को जगत के माता-पिता कहा जाता है |
शिवलिंगम को भोलेनाथ के रूप में पूजा जाता है, और जलहरी को माता पार्वती माना गया है जिनको सदैव शिवलिंग और जलहरी के रूप में साथ में पूजा जाता है जिन्हें पुरुष और प्रकृति का प्रतिक भी माना जाता है तथा जिनसे सृष्टि का संचालन होता है,
शक्ति और शिव एक दुसरे के अभिभाज्य अंग है और दोनों ही एक दुसरे के पूरक है, शिव के बिना शक्ति का कोई अस्तित्व नही है और शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व नही है
अगर शिव संकल्प करते है तो शक्ति संकल्प सिद्धि करती है शिव कारण है तो शक्ति कारक है शक्ति जाग्रत अवस्था है तो शिव सुसुकत अवस्था है अगर शिव सागर है तो शक्ति सागर की लहरे है आपका चेतन मन पुरुष है और अचेतन मन स्त्री है |
सृष्टी रचना में भी पुरुष और स्त्री के सहयोग की बात कही गयी पुरुष और स्त्री मिलकर ही पूर्ण होते है |हिन्दू धर्म में कोई भी शुभ काम स्त्री के बिना पूरा नही माना जाता है|क्युकी वह उसका आधा अंग है इसी कारण स्त्री को अर्धिनी कहा जाता है|
शिव में “इ” की मात्र शक्ति का प्रतिक है वह मात्रा अगर हटा दे तो वह शिव नही रह जाता वह “शव” हो जाता है और शव का अर्थ है जड़ या निसक्रिय इसलिए शिव को शक्ति की आवश्यकता होती है
पुरानो के अनुसार अर्धनारेश्वर रूप की उत्पप्ति
सृष्टी के प्रारंभ में रची गयी मानसिक सृष्टि विस्तार न पा सकी तब ब्रह्मा जी को बहुत दुःख हुआ| उसी समय आकाश वाणी हुयी आकाश वाणी ने कहा ब्रह्मा अब तुम मैथुनी सृष्टि का संचार करो ,आकाश वाणी सुनकर ब्रह्मा जी ने मैथुनी सृष्टि का निर्माण करने का निश्चय किया
परन्तु उस समय तक नारियो की उत्पत्ति ना होने के कारण अपने निर्णय में सफल नही हो सके तब ब्रह्मा जी ने परम परमेश्वेर भोले नाथ शिव शम्भू को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या करने लगे तब भोले नाथ ब्रह्मा जी से प्रसन्न होकर उन्हें अर्धनारेश्वेर के रूप में दर्शन दिया
देव आदि देव भगवान भोले नाथ के उस स्वरूप को देखकर ब्रह्माजी अभिभूत हो उठे और उन्होंने भूमि पर लेट कर उस अलोकिक विग्रह को प्रणाम किया महेश्वेर शिव ने कहा ब्रह्मा मुझे तुम्हारा मनोरथ ज्ञात हो गया था
जो तुमने सृष्टि के विकास के लिए जो तप किया है उससे में अधिक प्रसन्न हूँ, में तुम्हारा मनोरथ अवश्य पूर्ण करुगा ऐसा कह कर शिवजी ने आधे भाग से उमा को देवी को अलग कर दिया
उमा देवी को प्रणाम करके ब्रह्मा जी कहने लगे हे शिवे सृष्टी के प्रारम्भ में तुम्हरे पति ने मेरी रचना की थी किन्तु अनेक प्रायसो के बाद भी में असफल रहा अब में स्त्री और पुरुष के समागम से प्रजाओ को उत्पन्न कर के सृष्टी का विकास करना चाहता हु
तब देवी उमा आदि शक्ति ने ब्रह्मा जी को सृष्टी रचना में सयोग किया और शिव जी से विवाह करके सृष्टि को उत्पन्न किया तभी से अर्धनारीश्वर की पूजा की जाती है|
अर्धनारेश्वर शिवलिंग की उपासना के लाभ || narmdeshwar shivling labh
- जो व्यक्ति अर्धनारेश्वर शिवलिंग की उपासना करता है वह शिव और पार्वती दोनों दोनों की कृपा प्राप्त कर सभी मनोकामना पूर्ण कर लेता है
- अर्धनारेश्वर के दर्शन से समस्त संकटो से निवृति होती है
- अर्धनारेश्वर में भोले नाथ और माता पार्वती दोनों ही विराजमान रहते है जिन्हें घर में स्थापित कर सकते है जिससे परिवार के सदस्यों में प्रेम बना रहता है
- भगवान शिव की अर्धनारेश्वेर मूर्ति की पूजा करने से सुंदर पत्नी और सुखी वैवाहिक जीवन की प्राप्ति होती है।